Lekhika Ranchi

Add To collaction

आचार्य चतुसेन शास्त्री--वैशाली की नगरबधू-


79 . कुटिल ब्राह्मण : वैशाली की नगरवधू

अजित केसकम्बली ने जो कूटनीति का ताना -बाना इतनी चतुराई से फैलाया था , उसमें युवराज विदूडभ के अकस्मात् लुप्त हो जाने से बड़ा व्याघात पड़ गया । युवराज को मल्लबन्धुल ने ही उड़ाया है, इस सम्बन्ध में आचार्य को तनिक भी सन्देह नहीं रहा । आचार्य ने बन्धुल के जाते ही अस्वस्थता का ढोंग रचा और आस- पास के लोगों को विदा कर एकान्त में शय्या पर पड़ रहे । शय्या पर पड़कर उन्होंने एक शिष्य को बुलाकर कहा - “ सौम्य माधव , तू तनिक जाकर उस मागध वैद्य को बुला ला , मुझे उदर - पीड़ा है। ”

जीवक के आने पर आचार्य ने परामर्श किया । जीवक ने भी यही निश्चय किया कि कुमार को बंधुल ने ही उड़ाया है। दोनों इस बात पर सहमत थे कि कुमार का यह गोपन प्रकट न किया जाय । बन्धुल इसे प्रकट न करेगा, यह निश्चय है । वह उनके प्राण भी संकट में नहीं डालेगा , क्योंकि उसका अभिप्राय केवल यही है कि सम्राट का पता लगाया जाय । परन्तु अब विचारणीय बातें दो हैं - एक यह कि राजकुमार को छिपाया कहां गया है; दूसरी यह कि उनका उद्धार कैसे हो ? जीवक और आचार्य दोनों ही निरुपाय थे।

आचार्य ने कहा - “ जीवक, हमें सेनापति कारायण की प्रतीक्षा करनी होगी । ”

“ किन्तु आचार्य, राजपुत्र का एक मित्र है। ”

“ कौन है वह ? ”

“ वह एक मागध तरुण है। ”

“ वह कहां है ? ”

“ ढूंढ़ना होगा आचार्य! परन्तु वह निश्चय ही श्रावस्ती में है । ”

“ तब ढूंढ़ो प्रिय जीवक ! तब तक मैं अंतःपुर में क्या प्रतिक्रिया हो रही है, एक बार देखू। ”

वैद्य को विदा करके आचार्य ने शिष्य से कहा - “ पुत्र , तू राजमहल में देवी कलिंगसेना के हर्म्य में जा और कंचुकी बाभ्रव्य से कह कि आचार्य विष्णुपादामृत वेला में विशेष अनुष्ठान के लिए देवी के महल में आएंगे। देव - पूजन की सब व्यवस्था करके देवी स्नाता होकर तैयार रहें । उन्हें उपवास भी करना होगा।

शिष्य “ जो आज्ञा! ”कह महालय की ओर चला । आचार्य बहुत - सी बातों पर विचार करते हुए अपने शयन - कक्ष में पड़े रहे। इसी समय कारायण ने व्यग्र भाव से आकर कहा

“ यह क्या सुन रहा हूं मैं आचार्य ? ”

“ सेनापति , धैर्य से पूर्वापर - सम्बन्ध पर विचार कर कर्तव्य का निर्णय करो। ”

“ परन्तु मेरा कर्तव्य है कि सर्वप्रथम मल्ल बन्धुल को बन्दी करूं । ”

“ नहीं सेनापति , ऐसा करने से राजपुत्र का पता नहीं लगेगा । ”

“ तब क्या करना होगा ? ”

“ दो कार्य, एक नगर की रक्षा का सुदृढ़ प्रबन्ध , दूसरे बन्धुल की गतिविधि पर सतर्क दृष्टि । ”

“ तब ऐसा ही हो आचार्य ! परन्तु क्या हम कुमार की ओर से निश्चित बैठे रहें ? ”

“ निश्चिन्त क्यों सेनापति ? कुमार कहां हैं , पहले इसका पता लगाया जाए , पीछे उन्हें छुड़ाया जाए । बन्धुल अवश्य ही अत्यन्त गुप्त रूप से कुमार से मिलने जाएगा और उन्हें डरा - धमकाकर महाराज का पता पूछेगा। ऐसी स्थिति में उसका अत्यन्त छद्मवेश में बहुत सावधानी के साथ पीछा होना चाहिए। ”

“ ऐसा ही होगा आचार्य! ”

“ एक बात और, वत्स - राज्य की सीमा पर जो सेना है, उससे किसी भी दशा में बन्धुल का सम्बन्ध - सम्पर्क नहीं रहना चाहिए। इसके लिए पूरा सतर्क रहना होगा । उसका कोई चर सीमान्त पर न पहुंचने पाए , उसे तुरन्त बन्दी कर लिया जाए और बन्धुल को भी इसका पता नहीं लगना चाहिए ।

“ समझ गया , आचार्य, मैं ऐसी ही व्यवस्था करूंगा। ”

“ तो सेनापति , तुम समुचित व्यवस्था करो। एक बात और है ! ”

“ वह क्या ? ”

“ कुमार का मित्र एक मागध तरुण श्रावस्ती में है, उसे ढूंढ़ने में वैद्य जीवक को सहायता देनी होगी ।

“ अच्छा आचार्य! ” सेनापति अभिवादन कर वहां से चल दिया ।

   1
0 Comments